Ansuman Bhagat’s Your Own Thought Book’s Shorts Description of Contents

By on 4-18-2018 in Author, Breaking News, Latest News

Ansuman Bhagat’s Your Own Thought  Book’s Shorts Description of Contents

“Your Own Thought” book –This book has been written about various types of subjects, through which people can express their own ideas.

  1. वास्तविकता

इस संसार में, मानवता एकमात्र प्राणी है जिसका वास्तविकता समझना मुश्किल है, यह समझना उचित नहीं है कि दुनिया में मौजूद सभी घटक एक-दूसरे की वास्तविकता को प्रतिबिंबित करते हैं

किसी इंसान की वास्तविकता हमारे जीवन में होने वाली घटनाओं से होती है या भविष्य पर निर्भर करती है, अगर आम तौर पर देखी जाती है, तो इसे पूरी तरह समझाया नहीं जा सकता क्योंकि यह समय-समय पर बदल रहा है।

  1. सफलता

सफलता का अर्थ केवल बड़े नाम बनाने और बड़ा पैसा बनाने से नहीं होता है, अपितु खुद के प्रति लोगो में विश्वास और सम्मान होने से होता है|

आज के इस युग में सफल उन्हें नहीं माना जा सकता जो सिर्फ अपने नाम और काम के लिए जाने जाते है| वो भले ही देश के प्रधानमंत्री हो या एक बहुत बड़ा उद्योगपति, जब तक उनके लिए समाज में विश्वास और सम्मान न हो तब तक उनके लिए ऐसी पहचान बनाना व्यर्थ है जिसके माध्यम से वे समाज में जाने जाते है

 

  1. भेदभाव

भेदभाव की शुरुआत जाति और धर्म के निर्माण से ही होती है

देशों में सरकार के बनाए गए नियम केवल नाम मात्र के लिए रह गया है क्योंकि जात पात से संबंधित कई ऐसे नियम कानून आज भी है जो सिर्फ भारत देश में ही नहीं बल्कि और भी कई देशों के लोगों में भेदभाव के विचार उत्पन्न करता है जिसके परिणाम स्वरुप आज भी लोग एक-दूसरे के बीच जात-पात को लेकर आपस में दंगे फसाद करते हैं

  1. समय की महत्ता

किसी भी जीव जंतु के समय की शुरुआत उसके जन्म से ही हो जाती है और हमारे जीवन में समय की महत्ता काफी है क्योंकि जीवन में किसी भी प्राणी के जन्म के साथ-साथ उसकी मृत्यु भी निश्चित होती है किंतु यह किसी को ज्ञात नहीं होता इसी वजह से हमें अपनी चाह और आवश्यकताओं को जीवनकाल के अंदर ही पूरी कर लेनी चाहिए अन्यथा समय किसी के लिए नहीं रुकता और ना ही किसी का मोहताज होता है

इसलिए कहा जाता है समय की बर्बादी मतलब पैसे और जीवन दोनों की बर्बादी|

  1. भगवान का अर्थ

मनुष्य ने अपने अपने धर्म और जात से संबंधित कोई भगवान का निर्माण किया है जिसके कारण आज समाज में पूजा पाठ से संबंधित अंधविश्वास फैले हुए हैं|जब किसी के घर में कोई बच्चा बीमार पड़ता है तो उसे चिकित्सक या अस्पताल ले जाने के बजाए उसे मंदिरों में ले जाया जाता है| जहां मनुष्य के द्वारा बनाई गई काल्पनिक मूर्तियों अथवा प्रतिमाओं की पूजा की जाती है|

अगर वास्तविकता देखा जाये तो भगवान शब्द एक ऐसी सकारात्मक शक्ति है जिससे लोगो के मन्न में डर पैदा होता है क्यों की इसी शक्ति ने संसार का उत्पाती किया है| इस लिए हमे भगवान की आराधना केवल शांति प्रपात करने और सच्चाई को समझने के लिए करनी चाहिए ना  कि लोगों में अंध विश्वास फैलाने के लिए करनी चाहिए|

  1. खुद की पहचान

इस दुनिया में प्रत्येक वस्तुओं की पहचान उसके रंग, रूप और नाम से होता है जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसके परिवार वाले उस बच्चे के पहचान के लिए उसका नामकरण करते है जिससे लोगो को यह ज्ञात हो सके कि यह कौन है| लेकिन किसी के पहचान के लिए सिर्फ उसके नाम का होना ही काफी नहीं होता है किसी व्यक्ति का नाम उसके परिवार वाले या आस-पास के रहने वाले लोग ही जान पाते है|

किन्तु खुद की पहचान का मतलब प्रसिद्धि पाने से होता है, ऐसी प्रसिद्धि जिससे लोगो के बीच आपके ऊपर विश्वास बना हो और आपका नाम पुरे समाज में एक अच्छे व्यक्ति के रूप लोग जानते हो, तब जाकर एक पूर्ण पहचान मिलती है जिसे पाकर हमे स्वयं अच्छा महसूस होता है|

  1. जीवन की महत्वकांक्षा

मनुष्य जीवन दूसरे जीव-जंतुओं से काफी अलग है माना जाता है की जिस शक्ति ने मनुष्य जीवन की संरचना की है उन्होंने बहुत सोच बिचार कर के ही यह जीवन हम मनुष्य को दिया है हालाकि अन्य जीव जंतुओं को भी उसी शक्ति ने बनाया है जिसे इस युग के दौर में हम मनुष्यों ने उस शक्ति को भगवान का नाम दिया है

जीवन का मतलब केवल खुद के लिए जिंदगी जीने से नहीं होता, अपितु निस्वार्थ होकर दूसरों की सहायता करने से होता है| जितना हम खुद के लिए करते हैं यदि थोड़ा सहायता किसी और की करते हैं तो हमें ही अच्छा महसूस होता है, देखा जाए तो इसमें भी हमारा ही स्वार्थ होता है| यह जिंदगी स्वार्थ से भरा पड़ा है, लेकिन हम चाहे तो अपने स्वार्थ का सही फायदा उठाकर किसी की सहायता कर सकते हैं और तब जाकर जीवन जीने का सही अर्थ बनता है|

  1. क्रोध विनाशकारक

गुस्से में लिया गया कोई भी फैसला गलत ही साबित होता है, आम तौर पर देखा जाए तो गुस्सा करना हर व्यक्ति के व्यवहार में होता ही है, वह छोटा बच्चा हो या कोई बड़ा इंसान, किसी न किसी बात को लेकर इंसान को गुस्सा आ ही जाता है किंतु हमें इस बात पर जोर देना चाहिए कि गुस्सा करना हमारे सेहत के साथ साथ दिमाग पर भी असर करता है, जिसके कारण गुस्से में कोई भी सही फैसला नहीं ले पाता और बाद में खुद को अपनी गलतियों के कारण कोसते हैं, इसलिए ऐसे हालात में शांत रहना ज्यादा सही साबित होता है

हमें अपने गुस्से को खुद के वश में रखना चाहिए, क्योंकि गुस्से से हमारा मन चिंतित होता है और मन के चिंतित होने से हमारे अंदर की सोचने समझने की शक्ति कम हो जाती है और साथ ही साथ हमारा ज्ञान भी कम हो जाता है, दूसरों की गलतियों के लिए खुद को सजा देना ही गुस्से का मतलब होता है, इसलिए हमें अपने गुस्से को काबू में रखने के लिए कभी-कभी ध्यान भी करना चाहिए, जिससे हम अपने गुस्से पर काबू कर पाएंगे

  1. कठोर परिश्रम

इस संसार में आम इंसान से लेकर अमीर इंसान को भी अपने दैनिक दिनचर्या को चलाने के लिए या उसे और भी अच्छा बनाने के लिए मेहनत करने की आवश्यकता पड़ती ही है मेहनत करना खुद मैं एक काबिल ए तारीफ माना जाता है और मेहनत करने वाले इंसान अपनी मेहनत की वजह से वे हमेशा उच्च स्तर पर रहते हैं लेकिन जो लोग मेहनत करने से कतराते हैं वह खुद के लिए इस संसार में बोझ बनकर रह जाते हैं और ऐसे लोग अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मेहनत तो करते हैं किंतु उंहें अपने परिणाम मिलने की जल्दी पड़ी रहती है वैसे लोगों को धैर्य से काम करना चाहिए और अपने मेहनत के लिए अधिक सोचना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार मेहनत करने से पत्थर को भी मुहूर्त का आकार दिया जा सकता है ठीक वैसे ही इंसान के लिए इस संसार में कोई भी काम असंभव नहीं है अगर उस काम के लिए पुरजोर मेहनत किया जाए

  1. बचपन

किसी भी मनुष्य के बचपन का जीवन उसे कभी नहीं भूलना चाहिए यह एक ऐसा पल होता है जिसमें हमें ना तो सही गलत का ठीक से समझ होता है और ना ही झूठ और सच का, उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमें बहुत चीजों का ज्ञान होता है किंतु हम समय के साथ-साथ अपने बचपन के बीते पल को भी भुला देते हैं, किसी भी इंसान के बचपना का जीवन निस्वार्थ पूर्ण होता है इस उम्र में हमें जिस चीज की इच्छा होती है उसे बेझिझक मांग लेते हैं और हमें बचपन में यही सिखाया जाता है कि जब तुमसे कोई कुछ मांगे तो उसे बेझिझक दे देना चाहिए और यदि तुम्हें किसी चीज की इच्छा हो तो तुम भी उसे बेझिझक मांग सकते हो, लेकिन जब हम बड़े हो जाते हैं तो इन सब बातों का कोई मतलब नहीं समझते और समय के साथ-साथ बचपन के बीते पल को भुला कर बढ़ते चले जाते हैं बचपन ही इंसान का सच्चा और अनमोल पल होता है इसलिए हमें अपने बचपन को साथ में लेकर चलना चाहिए क्योंकि इसमें कोई स्वार्थ नहीं होता

  1. ज्ञान

जिस प्रकार समुंदर और आकाश की कोई सीमा रेखा नहीं होती ठीक उसी प्रकार ज्ञान की भी कोई सीमा रेखा नहीं होती हम जितना चाहे उतना अपने ज्ञान की कोस को बढ़ा सकते हैं जब तक हम जीवित है, और ज्ञान पाने का मतलब केवल शिक्षा से नहीं है बल्कि हम जिस समाज में रहते हैं उस समाज से जुड़ी सभी ज्ञान को प्राप्त करना काफी जरूरी है जिससे हमारे अंदर समाज के लोगों के रहने का तौर तरीका और मान-सम्मान करने का ज्ञान मिल सके क्योंकि सिर्फ शिक्षा का ज्ञान पाकर हम भले ही बड़ा इंसान तो बन जाएंगे लेकिन जब तक समाज और समाज के रहने वाले लोगों के लिए मान सम्मान की भावना हमारे अंदर ना हो तब तक एक काबिल इंसान नहीं बन सकते

हमारा ज्ञान तब और बढ़ जाता है जब आप अपना ज्ञान किसी और को देते हैं लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना ज्ञान किसी को नहीं देते यह सोचकर कि कहीं उनका ज्ञान कम ना हो जाए लेकिन यह कुछ लोगों की गलत धारणा होती है अगर देखा जाए तो आपके हाथ में रखा रोटी कोई भी छीन सकता है लेकिन आपका ज्ञान आपसे कोई नहीं छीन सकता क्योंकि यह सदैव आपके साथ रहता है

मरने के बाद शरीर भी साथ नहीं देता, किंतु ज्ञान हमेशा साथ देता है

  1. संस्कार

संस्कार शब्द आज के युग में लोगों के लिए सिर्फ दिखावा है केवल कुछ समय के लिए दिखावा और सिर्फ अपने आप को अच्छा कहलाने के लिए है ताकि दूसरों के सामने हम इज्जत दार और संस्कारी कहला सके, किंतु इन सब का कोई महत्व नहीं रहता क्योंकि जब तक हमारे अंदर से दूसरों के लिए आदर और सम्मान की भावना ना हो तब तक हम संस्कारी कहलाने के लायक नहीं हैं और रही बात संस्कार की तो यह शुरु से ही एक इंसान के अंदर होने चाहिए दिखावटी ना हो, जो संस्कार शुरू से ही हमारे अंदर होता है उसे किसी को दिखाने या बताने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि जिस व्यक्ति के अंदर अच्छे संस्कार हो वह स्वयं दिख जाता है

जिस प्रकार एक अंडे के ट्रे में सिर्फ अंडा होता है यदि उसमें एक सेब का फल डाल दे तो हमारी दृष्टि पहले उस ट्रे में रखें सेब के फल पर ही जाएगा इसलिए हमें अपने अंदर अच्छे संस्कार लानी चाहिए और हमें यह अपने परिवार वालों से या अपने आसपास के बुजुर्ग लोगों से सीख सकते हैं

  1. लगाव

लगाव का अर्थ है दो या दो प्राणियों के बीच का संबंध जिसके कारण वे एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं ठीक उसी प्रकार हम इंसानों के बीच भी लगा होता है जिसके कारण हम लंबे समय तक एक दूसरे से जुड़े रहते हैं मित्र, परिवार या पर्यावरण से जुड़े कई घटक है जिससे हमारा लगाव होता है आमतौर पर हमें यह देखने को मिलता है जब हम लंबे अरसे से किसी एक स्थान पर रहते हैं और अचानक वहां से जाने के बाद हमें थोड़ा अकेलापन महसूस होता है क्योंकि ऐसा होने का मुख्य कारण लगाव है या किसी निश्चित वस्तु या प्राणी के बीच नहीं होता यह संसार की किसी भी प्राणी से हो सकता है इस संसार में सबसे ज्यादा लगाव इंसान को अपने माता पिता और परिवार वालों के बीच होता है जिन्हे हम कभी अपनों से दूर होता नहीं देख सकते इसलिए हमें अपने माता पिता और परिवार वालों की इज्जत हमेशा करनी चाहिए

अगर आपको किसी से बहुत ज्यादा लगाव है तो आप उसे कभी खुद से अलग होने ना दें क्योंकि दूरियां बढ़ने से लगाव कम हो जाता है

  1. मृत्यु

प्रतिदिन इस संसार में लाखों लोगों की मृत्यु होती है अर्थात कितनों के घर उजड़ जाते हैं कितने लोग अपनों को छोड़कर जाने वालों के पीछे अपना आंसू बहाते हैं ऐसा सब लगाव के कारण होता है किंतु कुछ समय बीतने के बाद सब कुछ पहले जैसा ही हो जाता है

इस संसार में जो भी जन्म लेता है उसे एक ना एक दिन मरना ही होता है और इसे बदला नहीं जा सकता किसी के मरने के बाद उसके बारे में सोच कर खुद तकलीफ में रखना उचित नहीं है मरने के बाद की जिंदगी क्या है किसी को इसके बारे में ज्ञात नहीं लेकिन जब तक हम जीवित है तब तक हमें इस संसार का सुख भोगना चाहिए क्योंकि जिंदगी बहुत अनमोल है एक बार ही मिलती है और एक बार मरने के बाद किसी के लिए लौटकर वापस नहीं आती

  1. सुनना और ध्यानपूर्वक सुनना

ईश्वर ने इंसानी शरीर की संरचना काफी सोच समझकर की है जिसके कारण हम खुद को दूसरे जीवित प्राणियों से भिन्न समझते हैं आंख, मुंह, नाक, कान और त्वचा हमारे ज्ञानेंद्रिय अंग होते है जिसमें कान का उपयोग हम किसी भी ध्वनि को सुनाने के लिए करते हैं लेकिन मनुष्य के व्यवहार के कारण सुनना और ध्यानपूर्वक सुनना दो प्रकार में हैं हमारे आस-पास होने वाली घटनाओं से उत्पन्न ध्वनि का सुनाई देना किंतु यह हमें स्पष्ट रुप से समझ नहीं आता सुनना कहलाता है किंतु जब हम किसी ध्वनि को ध्यानपूर्वक सुनते हो और उस ध्वनि को स्पष्ट रुप से समझ भी सकते हो तो यह उस सुनना से भिन्न होता है

हमें किसी भी ध्वनि को स्पष्ट रूप से सुनकर उसे महसूस करके समझना काफी आवश्यक है ध्यानपूर्वक सुनने से हमारे सोचने समझने की शक्ति काफी अधिक होती है हम जितना बातें करते हैं उससे कहीं ज्यादा असर दूसरों की बातें सुनने से होता है